Swastika
इतिहास
वेदों में स्वास्तिक का वर्णन पूजा करने के लिए किया गया है ।
पुराणों से स्वास्तिक को बनाने तथा पूजा करने की विस्तृत जानकारी प्राप्त होती है ।
भारतीय संस्कृति में स्वास्तिक को अति शुभ माना जाता है । स्वास्तिक का प्रयोग विवाह, मुण्डन,संतान पैदा होने और गोवर्धन पूजा के दिन अनिवार्य रूप से किया जाता है ।
दयाराम साहनी के नेतृत्व में मोहन जोदड़ो की खुदाई से निकले सिक्कों पर भी स्वास्तिक के मंगल चिह्न बने हुए है । वर्तमान में ये ब्रिटिश संग्रहालय में सुरक्षित रखे हुए हैं ।
स्वास्तिक भारत में ही नही वरन् विश्व के कोने -कोने में तथा दूसरे धर्मावलम्बी भी स्वास्तिक का प्रयोग मंगल चिह्न के रूम में करते हैं ।
जर्मन तानाशाह एडोल्फ हिटलर ने स्वास्तिक को पार्टी का लोगो बनाया था ।
स्वास्तिक का अर्थ
स्वास्तिक चारों पुरूषार्थों जैसे - धर्म,अर्थ, काम, मोक्ष को दर्शाता है ।
स्वास्तिक का चिह्न दो तरह से बनाया जाता है । एक सीधा और दूसरा उल्टा । ऐसी मान्यता है कि इसकी चार भुजायें चारो पुरूषार्थों को दर्शाती है । ऊपर बाईं भुजा धर्म की प्रतिक है और दाहिनी ओर, अर्थ (सम्पत्ति) की प्रतीक है ।
नीचे बाईं ओर काम,तथा दाहिनी ओर की भुजा मोक्ष दर्शाति है । यह इस बात को भी दर्शाता है कि धर्म की प्रतिष्ठा से ही अर्थ, काम और मोक्ष की भी प्रतिष्ठा होती है । कहने का मतलब है कि हमारे जीवन में मंगल तभी आ सकता है ।
जब हम धर्म का पालन करें ।
पूजा की विधि
हिन्दू धर्म में स्वास्तिक के पूजन की विधि का वर्णन है । मंगल और बृहस्पतिवार को इसकी पूजा करनी चाहिए, सूर्योदय से पहले नहा-धोकर परिवार सहित स्वास्तिक की विधिपूर्वक पूजा करना फलदायी माना जाता है ।
चावल,लाल डोरा,फूल,पान और सुपारी के साथ पूजन करने से परिवार की सारी मनोकामनायें पूरी होती है साथ ही दुखो का निवारण हो जाता है ।
शास्त्र के अनुसार - अच्छी सेहत धन और आज्ञाकारी संतान के लिए घर के मुखिया को धारण करना चाहिए,और मंत्रो का जाप भी करना चाहिए ।
मंत्र - वेद में स्वास्तिक पूजा के मंत्र बताए गए हैं । सबसे पहले परमात्मा की स्तुति की गयी है," हे परमात्मा आप हमारे पिता है और मैं आपका पुत्र हूँ । जिस तरह से पिता अपने पुत्र की हर समय भलाई के बारे में सोचता रहता है,उसी तरह आप भी हमारी भलाई में लगे रहो''
हर तरह के उत्सवों यज्ञों आदि के अवसर पर इसके गायन की परम्परा है,प्राचीन काल से यज्ञ की हवन-वेदी के चारों और स्वास्तिक का निर्माण किया जाता रहा है,और विधिपूर्वक मंत्रों का उच्चारण किया जाता है । माना जाता है कि इन मंत्रों का उच्चारण करने वाले व्यक्ति में न केवल संकल्प
शक्ति दृढ़ होती है,बल्की वह साहसी भी होता है ।
यह प्रतीक और जाप हमें प्रेरणा देते हैं कि हमें केवल अपने लिए नहीं बल्कि सबके कल्याण के लिए सोचना और कार्य करना चाहिए ।
वेदों में स्वास्तिक का वर्णन पूजा करने के लिए किया गया है ।
पुराणों से स्वास्तिक को बनाने तथा पूजा करने की विस्तृत जानकारी प्राप्त होती है ।
भारतीय संस्कृति में स्वास्तिक को अति शुभ माना जाता है । स्वास्तिक का प्रयोग विवाह, मुण्डन,संतान पैदा होने और गोवर्धन पूजा के दिन अनिवार्य रूप से किया जाता है ।
दयाराम साहनी के नेतृत्व में मोहन जोदड़ो की खुदाई से निकले सिक्कों पर भी स्वास्तिक के मंगल चिह्न बने हुए है । वर्तमान में ये ब्रिटिश संग्रहालय में सुरक्षित रखे हुए हैं ।
स्वास्तिक भारत में ही नही वरन् विश्व के कोने -कोने में तथा दूसरे धर्मावलम्बी भी स्वास्तिक का प्रयोग मंगल चिह्न के रूम में करते हैं ।
जर्मन तानाशाह एडोल्फ हिटलर ने स्वास्तिक को पार्टी का लोगो बनाया था ।
स्वास्तिक का अर्थ
स्वास्तिक चारों पुरूषार्थों जैसे - धर्म,अर्थ, काम, मोक्ष को दर्शाता है ।
स्वास्तिक का चिह्न दो तरह से बनाया जाता है । एक सीधा और दूसरा उल्टा । ऐसी मान्यता है कि इसकी चार भुजायें चारो पुरूषार्थों को दर्शाती है । ऊपर बाईं भुजा धर्म की प्रतिक है और दाहिनी ओर, अर्थ (सम्पत्ति) की प्रतीक है ।
नीचे बाईं ओर काम,तथा दाहिनी ओर की भुजा मोक्ष दर्शाति है । यह इस बात को भी दर्शाता है कि धर्म की प्रतिष्ठा से ही अर्थ, काम और मोक्ष की भी प्रतिष्ठा होती है । कहने का मतलब है कि हमारे जीवन में मंगल तभी आ सकता है ।
जब हम धर्म का पालन करें ।
पूजा की विधि
हिन्दू धर्म में स्वास्तिक के पूजन की विधि का वर्णन है । मंगल और बृहस्पतिवार को इसकी पूजा करनी चाहिए, सूर्योदय से पहले नहा-धोकर परिवार सहित स्वास्तिक की विधिपूर्वक पूजा करना फलदायी माना जाता है ।
चावल,लाल डोरा,फूल,पान और सुपारी के साथ पूजन करने से परिवार की सारी मनोकामनायें पूरी होती है साथ ही दुखो का निवारण हो जाता है ।
शास्त्र के अनुसार - अच्छी सेहत धन और आज्ञाकारी संतान के लिए घर के मुखिया को धारण करना चाहिए,और मंत्रो का जाप भी करना चाहिए ।
मंत्र - वेद में स्वास्तिक पूजा के मंत्र बताए गए हैं । सबसे पहले परमात्मा की स्तुति की गयी है," हे परमात्मा आप हमारे पिता है और मैं आपका पुत्र हूँ । जिस तरह से पिता अपने पुत्र की हर समय भलाई के बारे में सोचता रहता है,उसी तरह आप भी हमारी भलाई में लगे रहो''
हर तरह के उत्सवों यज्ञों आदि के अवसर पर इसके गायन की परम्परा है,प्राचीन काल से यज्ञ की हवन-वेदी के चारों और स्वास्तिक का निर्माण किया जाता रहा है,और विधिपूर्वक मंत्रों का उच्चारण किया जाता है । माना जाता है कि इन मंत्रों का उच्चारण करने वाले व्यक्ति में न केवल संकल्प
शक्ति दृढ़ होती है,बल्की वह साहसी भी होता है ।
यह प्रतीक और जाप हमें प्रेरणा देते हैं कि हमें केवल अपने लिए नहीं बल्कि सबके कल्याण के लिए सोचना और कार्य करना चाहिए ।
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